लोहारिया (बांसवाड़ा)। युवाचार्य अनुभवसागर महाराज ने गुरुवारको प्रात: कालीन स्वाध्याय के दौरान कहा कि जीवन तो प्रत्येक प्राणी को प्राप्त होता है लेकिन जीवन का महत्व बहुत ही कम प्राणी समझते हैं। जीवन का गुजारा करना और जीवन पाकर विकास करना, ये जीवन की विभिन्न अव्यस्थाये हैं। एकेन्द्रिय प्राणी पृथ्वी, जल, अग्निकायिक, वायुकायिक एवं वनस्पति कायिक अपना अस्तित्व तो रखते हैं परंतु जीवन के महत्व से अनभिज्ञ जीवन- मरण के भ्रमण में ही पड़े रहते हैं। इसी तरह इल्ली, चींटी, मक्खी, मच्छर आदि प्राणी जी तो रहे हैं लेकिन जीवन के उद्देश्य से विहीन जीवन व्यर्थ ही खो रहे हैं। मनरहित यह प्राणी हेय उपादेय के ज्ञान से रहित हो रहे हैं और प्राप्त कुछ नहीं कर पाते। पशु-पक्षी भी अपने जीवन का गुजारा मात्र कर रहे हैं। कीड़े का जन्म भी कीचड़ में होता है और कमल का जन्म भी कीचड़ में होता है परंतु कीड़ा उसी कीचड़ में जन्म लेकर अपनी आदत से मजबूर कीचड़ में मरण को प्राप्त हो जाता है। दूसरी तरफ कमल जन्म भले ही कीचड़ में लेता है परंतु कीचड़ में लिप्त ना होता हुआ उस कीचड़ से उठ जाता है। ज्ञानी उसी कमल की तरह होता है जो संसार में तो रहता है परंतु संसार उसमें नहीं रह जाता। अज्ञानी घर में रहे ना रहे परंतु घर उसके दिल दिमाग पर छाया रहता है तभी तो अज्ञानी मात्र जीवन निर्वाह तक ही सीमित रह जाता है। जबकि ज्ञानी अपने विवेक से जीवन का निर्माण करता हुआ आगे निर्वाण का भी अधिकारी बन जाता है।
जीवन का निर्वाह नहीं, निर्माण करें, यही सच्ची मानवता- आचार्य अनुभव सागर महाराज
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