आज की युवा पीढी के बारे में कुछ कहना चाहती हूं। आज उनका आत्मविश्वास खत्म होता नजर आ रहा है। माता-पिता भी उनके आगे अपनी बात कहने से डरते है। सारी सुख सुविधाएं मिलने के बाद भी जरा सी हार या असफलता उनके सामने आ जाए तो वे अपना धैर्य खो बैठते हैं।?
हमें अपने बच्चों को धर्म, परिवार और संस्कारो की ओर ले जाने की जरूरत है। गुरूओं के सान्निध्य और आशीष की जरूरत है। समाज और धार्मिक अनुष्ठानों में हमें उनको आगे करना होगा, ताकि उनका आत्मविश्वास बना रहे। उनके अंदर कोई डर ना हो। हम बड़ों को भी समझना होगा कि हम उनके साथ कदम से कदम बढ़ा कर उनका साथ दें। उनकी छोटी-छोटी गलतियों पर उन्हें ना टोकें। उन्हें डर रहता है कि कुछ गलत हो जाएगा। इस डर को दूर करने की जरूरत है।
हमें उनको हर सामाजिक धार्मिक क्षेत्र में आगे करना होगा, ताकि हमारे बच्चों में संस्कार बनें रहें, हमारी आने वाली पीढी, हमारे गुरूओं की सेवा करे। आज जो परेशानी हमारे साधु संतो ंके सामने खड़ी हो रही है, वह ना हो और हमारे धर्म की रक्षा हो सके। मेरी सोच यही है कि हमारे बच्चों को गुरूओं के पास भेजा जाए, हम उन्हें मंदिरों से और हमारे तीर्थंकरों की वाणी से जोड़े रखें। पढाई के साथ उनके अंदर संस्कार भी विकसित करें।
उपकारों की छाया से अधिक सुहानी होती है तेज धूप
लजीज व्यंजनों के लिजलिजे चटकारे से
अधिक अर्थपूर्ण होती है भूख की छटपटाहट
जाया ना करो अपनी उर्जा, बांझ बन जाएगा तुम्हारा क्रोध
जय जिनेन्द्र
मन के विचार: बच्चों को धर्म से जोडें- श्रीमति हिमानी जैन,बांसवाड़ा
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