शान्तिनाथ तुम शान्तिनायक, पण्चम चक्री जग सुखदायक ।।
तुम ही सोलहवे हो तीर्थंकर, पूजें देव भूप सुर गणधर ।।
पत्र्चाचार गुणोके धारी, कर्म रहित आठों गुणकारी ।।
तुमने मोक्ष मार्ग दर्शाया, निज गुण ज्ञान भानु प्रकटाया ।।

भीलूड़ा दिगम्बर जैन मंदिर
जैन धर्म ने पूरी दुनिया को अहिंसा, तप, त्याग, संयम और शांति का संदेश दिया है। जैन धर्म के सोलहवें तीर्थंकर शांतिनाथ ने विश्व को स्याद्वाद का सिद्धांत दिया। उन्हें शांति का नायक कहा जाता है। भगवान शांतिनाथ ने राजसी वैभव और विलासिता को त्याग कर तप और सयंम का मार्ग अपनाया। उनके सिद्धांत आज और भी अधिक प्रासंगिक हो चले हैं। नई पीढ़ी उनके विराट व्यक्तित्व एवं जीवन चरित्रा से प्रेरणा लेकर अपना जीवन सफल बना सकती है। भगवान शांतिनाथ के जन्म कल्याणक के पावन अवसर पर आइए हम जानें भगवान शांतिनाथ के जीवन के बार में। भगवान शांतिनाथ से जुड़ी यह जानकारियां हमें अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज की डायरी और जैन सिद्धान्त कोश से प्राप्त हुई है। यह जानकारी हम आपसे साझा कर रहे हैं-
भगवान शांतिनाथ का जन्म ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को भरणी नक्षत्रा में हुआ। इक्क्षवाकु कुल में कुरूजांगल प्रदेश के हस्तिनापुर नगर में जन्में शांतिनाथ के जन्म से ही चारों ओर शांति का राज स्थापित हो गया था, इसीलिए उन्हें शांतिनायक भी कहा जाता है। उनके पिता हस्तिनापुर के राजा विश्वसेन थे। माता का नाम ऐरा और भाई का नाम चक्रायुध था। उनके नारायण नाम का पुत्रा था।
शांतिनाथ पांचवें चक्रवर्ती राजा और बारहवें कामदेव थे। जातिस्मरण से और दपर्ण में अपने मुख के दो प्रतिबिम्ब देखकर उन्हें वैराग्य भाव उत्पन्न हुआ था। वैराग्य के बाद उन्होंने ज्येष्ठ कष्णा चतुर्दशी को आम्रवन में दीक्षा ग्रहण की। पौष शुक्ला दशमी को उन्हें केवलज्ञान की प्राप्ति हुई। उन्होंने ज्येष्ठ कृष्णा चौदस को श्री सम्मेद शिखर जी से मोक्ष प्राप्त किया था।
पूर्वजन्म की कथा के अनुसार शांतिनाथ के संबंध में मान्यता है कि वे अपने पूर्व जन्म के कर्मों के कारण तीर्थंकर हो गए। पूर्व जन्म में शांतिनाथजी एक राजा थे। उनका नाम मेघरथ था। मेघरथ के बहुत ही दयालु थे और अपनी प्रजा की रक्षा के लिए हमेशा तैयार रहते थे। एक बार एक कबूतर उनके चरणों में आ गिर पड़ा और कहने लगा राजन मैं आपकी शरण में आया हूं, मुझे बचा लीजिए। तभी पीछे से एक बाज आकर वहां बैठ गया और वह भी मनुष्य की आवाज में कहने लगा कि हे राजन, आप इस कबूतर को छोड़ दीजिए, यह मेरा भोजन है।
राजा ने कहा कि यह मेरी शरण में है और मैं इसकी रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हूं। जीव हत्या पाप है। बाज कहने लगा कि मैं मांसभक्षी हूं। मैंने इसे नहीं खाया तो मैं भूख से मर जाऊंगा। तब मेरे मरने का पाप किसको लगेगा? आप मेरी रक्षा करें, मैं भी आपकी शरण में हूं।
धर्मसंकट की इस घड़ी में राजा ने कहा कि तुम इस कबूतर के वजन जितना मांस मेरे शरीर से ले लो, लेकिन इसे छोड़ दो। बाज इस बात को मान गया। तब राजा मेघरथ ने तराजू में अपनी जांघ का एक टुकड़ा रख दिया, लेकिन इससे भी कबूतर जितना वजन नहीं हुआ तो उन्होंने दूसरी जांघ का एक टुकड़ा रख दिया। फिर भी कबूतर जितना वजन नहीं हो पाया तो वे दोनों बाजुओं का मांस काटकर रख देते हैं, फिर भी जब कबूतर जितना वजन नहीं हो पाता है तब वे बाज से कहते हैं कि मैं स्वयं को ही इस तराजू में रखता हूं, लेकिन तुम इस कबूतर को छोड़ दो। राजा के इस आहार दान को देखकर बाज और कबूतर प्रसन्न होकर देव रूप में प्रकट हुए और कहा कि राजन तुम देवतुल्य हो। देवताओं की सभा में तुम्हारा गुणगान किया जा रहा है। हमने आपकी परीक्षा ली, हमें क्षमा करें। हमारी ऐसी कामना है कि आप अगले जन्म में तीर्थंकर हों। दोनों देवताओं ने राजा मेघरथ के शरीर के सारे घाव भर दिए। राजा मेघरथ इस घटना के बाद राजपाट छोड़कर तपस्या के लिए चले गए।
भगवान शांतिनाथ के जीवन से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य:
तीर्थंकर क्रमांक – 16
चिह्न – हिरण
पिता – विश्वसेन
माता – ऐरा
वंश – इक्ष्वाकु
उत्सेध (ऊँचाई) – 40 धनुष
वर्ण- स्वर्ण
आयु – 1 लाख वर्ष
पूर्व भव जानकारी
मनुष्य भव में नाम – मेघरथ
मनुष्य भव में क्या थे – मण्डलेश्वर
मनुष्य भव के पिता – चिन्तारक्ष (घनरथ तीर्थंकर 164)
मनुष्य भव का देश – नगर जम्बू विपुण्डरीकिणी
पूर्व भव की देव पर्याय – सर्वार्थसिद्धि
गर्भ तिथि – भाद्र कृष्ण सप्तमी
गर्भ-नक्षत्रा – भरणी
गर्भ काल – अन्तिम रात्रि
जन्म तिथि – ज्येष्ठ कृष्ण चतुर्दशी
जन्म नगरी – हस्तिनापुर
जन्म नक्षत्रा – भरणी
योग – याम्य
वैराग्य कारण – जाति स्मरण
दीक्षा तिथि – ज्येष्ठ कृष्ण 14
दीक्षा नक्षत्रा – भरणी
दीक्षा काल – अपराह्न
दीक्षोपवास – तृतीय उपवास
दीक्षा वन – आम्रवन
दीक्षा वृक्ष – नन्द
सह दीक्षित – 1000
केवलज्ञान तिथि – पौष शुक्ल 11
केवलज्ञान नक्षत्रा – भरणी
केवलोत्पत्ति काल – अपराह्न
केवलज्ञान स्थान – हस्तिनापुर
केवलज्ञान वन- आम्रवन
केवलज्ञान वृक्ष – नन्दी
योग निवृत्ति काल – 1 मास पूर्व
निर्वाण तिथि – ज्येष्ठ कृष्ण 14
निर्वाण नक्षत्रा – भरणी
निर्वाण काल- सायं
निर्वाण क्षेत्रा – सम्मेदशिखरजी
समवसरण का विस्तार – 4 1/2 योजन
सह मुक्त- 900
पूर्वधारी – 800
शिक्षक – 41800
अवधिज्ञानी – 3000
केवली – 4000
विक्रियाधारी – 6000
मनपर्ययज्ञानी – 4000
वादी – 2400
सर्व ऋषि संख्या – 62000
गणधर संख्या – 36
मुख्य गणधर – चक्रायुध
आर्यिका संख्या – 60300
मुख्य आर्यिका – हरिषेण
श्रावक संख्या – 200000
मुख्य श्रोता – कुनाल
श्राविका संख्या- 400000
यक्ष – गरुड
यक्षिणी – मानसी
आयु जानकारी
आयु – 1 लाख वर्ष
कुमारकाल – 25000 वर्ष
विशेषता – चक्रवर्ती
राज्यकाल मण्डलेश$चक्रवर्ती- 25000$25000
छद्मस्थ काल – 16 वर्ष
केवलिकाल – 24984 वर्ष
तीर्थ संबंधी तथ्य
जन्मान्तरालकाल – (3 सागर $9 लाख वर्ष)दृ3/4 पल्य
केवलोत्पत्ति अन्तराल – 1/2 पल्य 1250 वर्ष
निर्वाण अन्तराल- 1/2 पल्य
तीर्थकाल – 1/2 पल्य$1250 वर्ष
तीर्थ व्युच्छित्ति – नही
शासन काल में हुए अन्य शलाका पुरुष-
चक्रवर्ती स्वयं
बलदेव- नहीं
नारायण – नहीं
प्रतिनारायण- नहीं
रुद्र – पीठ
पूर्व भव
1. मगधदेश का राजा श्रीषेण ।
2.भोगभूमि में आर्य ।
3.सौधर्म स्वर्ग में श्रीप्रभ नामक देव ।
4. अर्ककीर्ति का पुत्रा अमिततेज ।
5. तेरहवें स्वर्ग में रविचूल नामक देव ।
6. राजपुत्रा अपराजित ।
7.स्वर्ग में अच्युतेंद्र ।
8. पूर्व विदेह में वज्रायुध नामक राजपुत्रा ।
9.अधो ग्रैवेयक में अहमिंद्र ।
10.राजपुत्रा मेघरथ ।
11. पूर्वभव में सर्वार्थ सिद्धि में अहमिंद्र था ।
12. तीर्थंकर शांतिनाथ ।